रिपोर्टर: जगदीश कुरे, काँपु मैनपाट
तारीख: 17 जुलाई 2025
सरगुजा (छत्तीसगढ़):
सरकार जहां एक ओर “स्कूल चलें हम” और “प्रवेश उत्सव” जैसे अभियान चलाकर शिक्षा को बढ़ावा देने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी ओर सरगुजा के ग्रामीण इलाकों के स्कूलों की ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट नजर आ रही है।
ग्राम पंचायत खरा भावना स्थित प्राथमिक विद्यालय में जब न्यूज़ पोर्टल की टीम पहुँची, तो वहां पढ़ने वाले आदिवासी बालक-बालिकाएं फटे पुराने कपड़ों में दिखाई दिए। पूछने पर बच्चों ने बताया कि उन्हें इस शैक्षणिक सत्र में न तो नए ड्रेस मिले हैं और न ही कॉपी-किताबें।
गौरतलब है कि हाल ही में स्कूल प्रवेश उत्सव के तहत प्रदेश के मंत्री ओ.पी. चौधरी ने बच्चों को टीका लगाकर उत्सवपूर्वक प्रवेश दिलाया था। लेकिन ग्रामीण बच्चों को बुनियादी शैक्षणिक संसाधन तक समय पर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।
शिक्षा की स्थिति अत्यंत चिंताजनक
उक्त विद्यालय में एकमात्र शिक्षक पदस्थ हैं, जो अक्सर अन्य कार्यों में व्यस्त रहते हैं। बच्चों ने बताया कि शिक्षक के अनुपस्थित रहने पर देखभाल करने वाला कोई नहीं होता, और अधिकांश बच्चे स्कूल नहीं आकर गांव में घूमते रहते हैं।
जिला सरगुजा क्षेत्र के अन्य स्कूलों की भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। कहीं शिक्षक ही नहीं हैं, तो कहीं शिक्षक 20–25 किलोमीटर दूर से आकर सिर्फ खानापूर्ति कर वापस लौट जाते हैं। पढ़ाई नाम मात्र की हो रही है।
प्रशासनिक प्रतिक्रिया और खामोशी
जब इस विषय में बीईओ (खंड शिक्षा अधिकारी) धर्मजयगढ़ से बात की गई, तो उनका कहना था कि –
> “कुछ बच्चों को गणवेश मिल चुका है, कुछ को मिलना बाकी है।”
हालांकि अधिकारियों के तबादले के साथ ही बयान भी बदलते नजर आ रहे हैं।
सरकार करोड़ों रुपये का बजट शिक्षा के नाम पर हर साल जारी करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका लाभ बच्चों को नहीं मिल पा रहा। उच्च अधिकारी ग्रामीण स्कूलों का निरीक्षण तक नहीं करते, जिससे व्यवस्थाएं और अधिक लचर हो गई हैं।
निष्कर्ष:
गांव-देहात के बच्चों के शिक्षा के अधिकार से समझौता किया जा रहा है। यह स्थिति चिंता का विषय है और यदि समय रहते प्रशासन व शिक्षा विभाग ने ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ी अंधकार में चली जाएगी।

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