छत्तीसगढ़ में शिक्षा व्यवस्था को सशक्त बनाने युक्तियुक्तकरण की पहल — बिलासपुर जिले में भी तेजी से हो रहा क्रियान्वयन

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बिलासपुर, छत्तीसगढ़।
राज्य सरकार द्वारा शिक्षा व्यवस्था को अधिक समावेशी, संतुलित और गुणवत्तापूर्ण बनाने की दिशा में शालाओं और शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण की व्यापक प्रक्रिया जारी है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ग्रामीण और दूरस्थ अंचलों की शालाओं में भी विषय-विशेषज्ञ शिक्षक उपलब्ध हों, जिससे बच्चों की पढ़ाई में गुणवत्ता और निरंतरता बनी रहे।

राज्य के शहरी क्षेत्रों में जहाँ छात्रों की तुलना में अधिक शिक्षक पदस्थ हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों में शिक्षक विहीन और एकल शिक्षकीय शालाओं की संख्या चिंताजनक है। राज्य में 212 प्राथमिक और 48 पूर्व माध्यमिक शालाएं शिक्षकविहीन हैं, जबकि हजारों शालाएं एकल शिक्षकीय स्थिति में हैं।

बिलासपुर जिले की स्थिति भी कुछ अलग नहीं — जिले में 4 प्राथमिक शालाएं शिक्षकविहीन और 126 एकल शिक्षकीय थीं। इसके साथ ही प्राथमिक शालाओं में 1608 सहायक शिक्षक और पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में 230 शिक्षकों की आवश्यकता चिन्हित की गई है।

इस असंतुलन को दूर करने के लिए युक्तियुक्तकरण के तहत 457 प्राथमिक और 211 पूर्व माध्यमिक शिक्षक अतिशेष घोषित किए गए, जिनका काउंसलिंग कर जरूरतमंद स्कूलों में पुनः समायोजन किया गया।

बिलासपुर जिले में विशेष कार्यवाही

बिलासपुर जिले के कोटा, मस्तूरी और तखतपुर के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों जैसे खपराखेल, सबरियाडेरा और डिलवापारा की शिक्षकविहीन शालाओं में 2-2 शिक्षकों की पदस्थापना की गई। वहीं, एकल शिक्षकीय पूर्व माध्यमिक शालाओं (चितवार, जैतपुर, तरवा, नगोई) में 03-03 शिक्षक दिये गये।
शासकीय हाईस्कूल कुकुदा (मस्तूरी) को 05, सैदा (तखतपुर) को 04 और कुकुर्दीकला को 03 शिक्षक मिले हैं।

वहीं दूसरी ओर, शहर की शालाओं में जहाँ शिक्षक संख्या आवश्यकता से अधिक थी, वहाँ से अतिशेष शिक्षकों को हटाकर कम शिक्षक संख्या वाली शालाओं में समायोजित किया गया। उदाहरण के तौर पर, पूर्व माध्यमिक शाला तारबहार (बिल्हा) में 142 छात्रों पर 11 शिक्षक पदस्थ थे, जिन्हें अन्यत्र शालाओं में समायोजित किया गया।

शिक्षा में गुणवत्ता और समानता की दिशा में ठोस कदम

शिक्षा विभाग द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि यह युक्तियुक्तकरण किसी भी प्रकार की कटौती नहीं, बल्कि गुणवत्ता और समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे न सिर्फ शिक्षक विहीन विद्यालयों में शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी, बल्कि एक ही परिसर में क्लस्टर मॉडल विकसित कर बुनियादी संरचनाओं और संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जा सकेगा।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के दिशा-निर्देशों के अनुसार, इस समायोजन से छात्र-शिक्षक अनुपात को संतुलित करने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में 21.84 और पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में 26.2 छात्र प्रति शिक्षक का अनुपात राष्ट्रीय औसत से बेहतर स्थिति में है।

इस कदम से ड्रॉपआउट दर में कमी, बच्चों को निरंतर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, तथा प्रवेश प्रक्रिया की जटिलताओं में राहत मिलने की उम्मीद है।

शिक्षकों की असमान पदस्थापना के उदाहरण भी आए सामने

राज्य के विभिन्न जिलों से प्राप्त आंकड़ों में यह स्पष्ट हुआ कि कई शहरी शालाओं में जरूरत से ज्यादा शिक्षक हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति विपरीत है।

रायपुर के नयापारा कन्या स्कूल में 33 छात्राओं पर 7 शिक्षक और रविग्राम में 82 छात्रों पर 8 शिक्षक हैं।

वहीं दुर्ग के हाई स्कूल मुरमुदा में 63 छात्रों पर सिर्फ 3 व्याख्याता हैं और बिरेझर जैसे स्कूलों में एक भी व्याख्याता नहीं है।

कोरबा जिले में 14 प्राथमिक और 4 माध्यमिक शालाएं शिक्षकविहीन थीं, जिनमें अब शिक्षकों की पदस्थापना की गई है।

निष्कर्ष

जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग ने यह सुनिश्चित किया है कि युक्तियुक्तकरण के इस निर्णय से किसी भी विद्यार्थी की पढ़ाई प्रभावित नहीं हो। जिले में 431 शालाओं का समायोजन कर शिक्षा व्यवस्था को संतुलित और सशक्त बनाने की दिशा में ठोस पहल की गई है।

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