“नोटिस बनाम न्यूज”: रतनपुर में पत्रकार और ASI आमने-सामने, मामला पहुँचा कप्तान दरबार की दहलीज पर

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बिलासपुर ज़िले के रतनपुर में एक स्थानीय पत्रकार और पुलिस विभाग के एएसआई के बीच हुए टकराव ने पूरे जिले में सुशासन से ज्यादा “सत्ता बनाम सच” की बहस छेड़ दी है। पत्रकार द्वारा शराब माफियाओं को लेकर प्रकाशित की गई खबर के बाद एएसआई नरेश गर्ग ने पत्रकार को कानूनी नोटिस भेजते हुए उससे पत्रकारिता की डिग्री और खबर के प्रमाण मांगे हैं।

खबर क्या थी?

पत्रकार की रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय थाना क्षेत्र में कुछ शराब माफिया पकड़े गए थे, जिन्हें कथित तौर पर बीस हजार रुपये की लेन-देन के बाद छोड़ दिया गया। चौंकाने वाली बात यह रही कि वही आरोपी दो दिन बाद फिर से पकड़ में आ गए। इस पूरे घटनाक्रम पर खबर प्रकाशित होते ही एएसआई ने पत्रकार को कानूनी नोटिस थमा दिया।

सवालों के घेरे में अफसर की “भावनाएं”

नोटिस में दावा किया गया है कि खबर से अधिकारी की “मानसिक, सामाजिक और पारिवारिक प्रतिष्ठा को आघात” पहुँचा है। पत्रकार से सात दिन के भीतर जवाब देने, सबूत प्रस्तुत करने और शैक्षणिक व पेशेवर योग्यताओं का विवरण मांगा गया है।

पत्रकार का पलटवार: “तथ्य लिखे हैं, कहानी नहीं”

पत्रकार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
“मैंने कोई कहानी नहीं गढ़ी, जो लिखा है, वह तथ्य है। मेरे पास दस्तावेज़, बयान और प्रमाण हैं — और अब यह सब पुलिस कप्तान के सामने प्रस्तुत किया जाएगा।”

अब मामला पहुँचा कप्तान दरबार

अब यह मामला जिले के पुलिस अधीक्षक के समक्ष रखा जाएगा, जहाँ पत्रकार अपने पक्ष को तथ्यों सहित पेश करेंगे। उनका कहना है कि खबर में कुछ भी काल्पनिक नहीं था और यदि अधिकारी को आपत्ति है तो कानूनी रास्ता खुले हैं — लेकिन पत्रकारिता को डराने की कोशिश स्वीकार्य नहीं।

बड़ा सवाल: खबर से सच्चाई उजागर या ताकत को ठेस?

रतनपुर की गलियों से लेकर सोशल मीडिया तक एक ही सवाल उठ रहा है —
“अगर खबर झूठी थी तो खंडन क्यों नहीं? और अगर सच्ची थी तो हंगामा क्यों?”
क्या अब पत्रकारों को अपनी साख साबित करने के लिए कलम से नहीं, डिग्री से काम लेना होगा?

निष्कर्ष

यह प्रकरण एक स्थानीय विवाद से बढ़कर उस राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बनता जा रहा है, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सत्ता की जवाबदेही और लोकतांत्रिक मूल्यों की असली परीक्षा हो रही है। अब नजरें जिला कप्तान की ओर हैं — देखना है कि न्याय अंधा होता है या सच्चाई की ओर देखता है।


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