कुसमुण्डा GM के पुतले पर थूका, फिर फूंका – विस्थापितों का फूटा गुस्सा

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 कोरबा, छत्तीसगढ़ | 19 जुलाई 2025

➡️ एक दिन पहले महिलाओं ने किया था अर्धनग्न प्रदर्शन, आज हुआ पुतला दहन

कुसमुंडा क्षेत्र में एसईसीएल (SECL) प्रबंधन के खिलाफ विस्थापितों का आक्रोश चरम पर पहुँच गया है। शुक्रवार को जहां महिलाओं ने अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया, वहीं शनिवार को कुसमुण्डा जीएम सचिन पाटिल और कंपनी सीएमडी का पुतला फूंककर भूविस्थापितों ने गुस्सा जताया। पुतले पर थूका गया, पैरों तले रौंदा गया और जमकर नारेबाजी की गई।

 विरोध का दृश्य:

भूविस्थापित रोजगार एकता महिला किसान संगठन के बैनर तले प्रदर्शनकारी जुलूस निकालते हुए जीएम कार्यालय पहुंचे और वहां GM एवं CMD के पुतले का दहन किया। एक प्रदर्शनकारी ने पुतले पर थूकते हुए कहा कि “हमारी जमीनें गईं, लेकिन नौकरियां किसी और को दी गईं।”

महिलाओं ने एक दिन पहले कार्यालय के भीतर अर्धनग्न प्रदर्शन कर कहा था – “आप चूड़ी पहन लो, हम यहां से चले जाएंगे।”

 विस्थापितों का आरोप:

विस्थापितों का कहना है कि:

फर्जी सहमतियों के आधार पर नौकरियां दी गईं।

उनके नाम से जुड़े खातों में बाहरी लोगों को रोजगार दे दिया गया।

पूर्व अधिकारी अनुपम दास की भूमिका संदिग्ध रही है।

 SECL की सफाई:

SECL अधिकारियों का कहना है कि सभी नियुक्तियाँ सहमति और शासन द्वारा सत्यापन के बाद ही की गई हैं। “हमने नियमों का पालन किया है, अब ये हमारी गलती कैसे?” – ऐसा सवाल उठाया गया।

 1978 की पृष्ठभूमि – ‘खेला’ का दौर:

जानकारों के अनुसार, 1978 में जब पुनर्वास नीति नहीं थी:

तीन एकड़ पर एक नौकरी का प्रावधान था।

छोटे भू-स्वामियों को भी नौकरी मिलती थी ताकि मैनपावर पूरा हो सके।

उसी समय राजस्व विभाग, आरआई, पटवारी और SECL अधिकारियों की मिलीभगत से बड़ी हेराफेरी की गई।

ज़मीनों को टुकड़ों में बेचकर फर्जी सहमति से नौकरी दिलाई गई।

 वर्तमान में संकट:

अब वे असली भू-स्वामी जिनके खातों में नौकरी नहीं पहुँची, अपना हक मांग रहे हैं।

रोजगार, मुआवजा, पुनर्वास और बसाहट जैसे मुद्दों पर SECL की नीति संदेह और विरोध के घेरे में है।

茶 संक्षेप में:

यह मामला न केवल प्रशासनिक अनियमितता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि विकास परियोजनाओं की कीमत अक्सर स्थानीय जनता को वर्षों तक चुकानी पड़ती है।

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